BA Semester-5 Paper-2 Fine Arts - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2804
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर

 

अध्याय - 5
मुगल स्कूल :
अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ
Mughal School :
Akbar, Jahangir
and Shahjahan

प्रश्न- अकबर के शासनकाल में चित्रकारी तथा कला की क्या दशा थी?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. किस शासक ने बहुत से चित्रकारों को आश्रय दिया?
2. किसने प्रसुप्त भारतीय चित्रकला को जीवित किया?

उत्तर-

सभी मुगल सम्राटों में अकबर का शासन काल अनेक प्रकार प्रभावपूर्ण रहा क्योंकि उन्होंने विविध राज्यों एकता के आधार पर विशाल साम्राज्य की स्थापना की। वह जब 1550 सिंहासनारूढ हुए तब वह 13 वर्ष के थे।

तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियाँ अकबर के सर्वथा विपरीत थी। परन्तु परिश्रम साहस एवं दृढ प्रतिज्ञा से उन्होंने दुष्कर मार्ग को सुगम बना दिया।

अकबर की कार्य क्षमता एवं अद्वितीय दूरदर्शिता में उनकी समन्वयात्मक नीति ने विशेष योगदान दिया। उन्होंने धार्मिक द्रोह आक्रोशित जनता को शान्त किया और शनैः अपने साम्राज्य की सीमा रेखाओं का भी विस्तार किया।

इस समय तक उत्तर भारत में समृद्धता एवं शान्ति स्थापित हो चुकी थी। इसी कारण साथ ही साथ वह यथासम्भव कला एवं साहित्य जगत को भी एक आधार प्रदान कर दृढ़ करते रहे।

अबुल फजल की रचना 'आइने अकबरी' से ज्ञात होता है कि उन्हें किशोरावस्था से ही चित्रकला का शौक था। अबुल फजल के अनुसार “किशोरावस्था से ही श्रीमान की अभिरूचि चित्रकला की ओर रही है और वे सब तरह से उसे प्रोत्साहित करते हैं। चित्रकला को वे अध्ययन एवं मनोरंजन का हेतु मानते हैं। उनके इस पृष्ठपोषण से यह कला उन्नत हो रही है और अनेक चित्रकारों ने प्रसिद्धि प्राप्त की है। चित्रशाला के दरोगा प्रतिसप्ताह समस्त चित्रकारों के काम को श्रीमान के सम्मुख उपस्थित करते हैं। जो काम की उत्तमता के अनुसार कारीगरों को इनाम देते हैं व उनका वेतन बढ़ाते हैं।"

इतिहास साक्षी है कि अकबर ने अपने आश्रय में बहुत से कलाकारों को स्थान दिया और सम्मानित पद पर प्रतिष्ठित किया। इसी के साथ-साथ अकबर में अपने कलाकारों के कार्यों को परखने की क्षमता भी थी।

प्रारम्भिक समय में अकबर के दरबार में ईरानी कलाकार प्रमुख थे। इसलिए तत्कालीन चित्रों पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट रूप देखा जा सकता है जैसे कि मुख्य रूप से बाबरनामा के चित्रों में इसी समय हम्जानामा भी चित्रण हुआ जिसमे अंकित मानवाकृतियों वास्तु रंगाकन आदि में इरानी प्रभाव दिखायी देता है।

इस प्रकार अकबर काल मे भारतीय तथा ईरानी शैली का सम्मिश्रण दिखायी देता है।

वाचस्पति गैरोला भी उसकी पुष्टि कुछ इस प्रकार करते हैं, इन मुगलकालीन चित्रों में दो प्रकार की शैलियों का सम्मिश्रण है- भारतीय और ईरानी अन्तः सौंदर्य की अभिव्यक्ति जिन चित्रों में दर्शित है उनमे भारतीय शैली को अपनाया गया है और वाहय सौंदर्य का अभिव्यंजन ईरानी शैली के माध्यम से हुआ है। इस प्रकार भारतीय शैली के चित्रों में की प्रधानता और ईरानी शैली के चित्रों में उत्तम रेखांकन का समावेश हुआ।

धीरे धीरे ईरानी शैली के चित्रकारों पर भारतीय प्रभाव पड़ने लगा। साथ ही काश्मीरी एवं राजस्थानी शैलियों ने भी मुगल कलाकारों को प्रभावित किया।

इन्होंने हिन्दु कलाकारों के साथ मिलकर कार्य किया क्योंकि अकबर हिन्दू कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। इस समय बहुत से हिन्दु कलाकारों के नाम मिलते हैं।

आइने अकबरी में अबुल फजल एक स्थान पर लिखते हैं यह सत्य है कि हिन्दुओं के चित्र हमारी चित्रकला को मात करते हैं। वास्तव सम्पूर्ण संसार में इनके जैसे चित्रकार कम मिलते हैं।

अकबर के दरबार में चूंकि सभी कलाकारों ने मिलकर कार्य किया । इसलिए एक ही चित्र में अलग-अलग कलाकारों की तूलिका होने के कारण आपसी प्रभाव का पड़ना सम्भाव्य था।

अकबर पुस्तकों के आधार पर चित्रों को तैयार करवाते थे । संस्कृत एवं फारसी दोनों का ही वह सम्मान करते थे।

इससे सम्बन्धित बहुत से दृष्टान्त चित्रों तथा हस्तलिखित पोथियों को अकबर ने सचित्र तैयार कराया जिनमें से शाहनामा, तवारीखे-खानदान-ए-तैमूरिया, अकबर नामा, अनवार-ए-सुहेली ( पंचतंत्र का अनुवाद) रज्मनामा (रामायण का अनुवाद) बाकआत - वाबरी ( बाबर की आत्म कथा रामायण, महाभारत, हरिवंश, दशावतार, कृष्णचरित, तृतीनामा कथा सरित्सागर, चंगेजनामा आदि प्रमुख हैं।

इन पोथियों में विषयानुसार सभी प्रकार की सामाजिक राजनैतिक घटनाओं तथा उत्सव आदि को चित्रित किया गया है। साथ ही विषय से सम्बन्धित प्रत्येक पात्र आत्माभिव्यक्ति में कलाकार की तूलिका के कौशल को भी प्रत्यक्ष प्रदर्शित करता है।

यह हस्तलिखित पोथियाँ जहाँ एक ओर कलाकार के कौशल की सूचक हैं वहीं दूसरी ओर आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह पोथियाँ मूल्यवान हैं।

यह पोथियाँ अकबर के शो पुस्तकालय में संग्रहित थी जो आगरा और दिल्ली के साथ-साथ लाहौर में भी था। आज यह पोथियाँ लंदन फ्रांस यूरोप तथा भारत के विभिन्न संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हैं। रज्मनामा का चित्रण दसवन्त तथा वसावन द्वारा बहुत ही सुन्दरता पूर्वक किया गया।

यह सर्वविदित है कि अकबर एक उत्कृष्ट कला प्रेमी थे जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण तत्कालीन कलाकृतियों को देखकर हो जाता है। अकबर ने राजनीति और कला के क्षेत्र में साहसपूर्ण कार्य किए उनके अनुसार चित्रकार ही मानव का एक मात्र गुरू है जो ईश्वर की विभूतियों को प्रस्तुत कर उसके अस्तित्व को बताता है।

उनका ऐसा विश्वास था कि चित्रकार जब कला साधना करता है। तो वह ईश्वर से साक्षात्कार करता है। उसके हृदय में एक प्रकार की आध्यात्मिक शक्ति का निवास होता है और इसी शक्ति से चित्रकार सुन्दर चित्रों का निर्माण कर पाता है।

वाचस्पति गैरोला के अनुसार, शहंशाह अकबर पहला कला प्रेमी शासक था, जिसने प्रसुप्त भारतीय चित्रकला को पुनरूज्जीवित किया। उसने बड़े उद्योग से अच्छे चित्रकारों को अपने यहाँ आदरपूर्वक आमन्त्रित किया। उसने बाहरी चित्रकारों को उनकी कृतियों पर पुरस्कार देकर उन्हें प्रोत्साहित किया। उसने धर्म के प्रतिबन्धों से नियन्त्रित चित्रकला को उभारा और उसको लोक गोचर करके जनता के हृदय में अपना वास्तविक स्थान बनाया। धर्म के ठेकेदार मौलवी - मुल्लाओं के कुप्रचार के भय से भारतीय चित्रकार अपने क्षेत्र से हटते जा रहे थे, किन्तु अकबर की इस उदारता ने उसमें नए जीवन का संचार किया जिसका प्रबल समर्थक हुआ शहंशाह जहाँगीर ।

अकबर के दरबार में लगभग 100 कलाकार कार्य कर रहे थे और सभी कलाकार अपने कार्यों में इतने दक्ष थे कि इनको प्रसिद्धि ईरान तथा यूरोप जैसे देशों में भी हो रही थी जिसकी पुष्टि अबुल फजल के वक्तव्य से हो जाती है।

“चित्रकारी की सामग्री में बहुत उन्नति हुई है एवं रंग बनाने का तरीका विशेष उन्नत हुआ है जिसके कारण अब चित्रों की अभूतपूर्व तैयारी होने लगी है। अब ऐसे-ऐसे चित्रकार तैयार हो गए हैं कि इनके चित्र यूरोप के चित्रकारों से टक्कर लेते हैं। उनके दरबार के हिन्दु चित्रकार मुस्लिम चित्रकारों की तुलना में अधिक दक्ष एवं संवेदनशील थे। इन कलाकारों ने बहुत सी पोथियों में चित्रों का निर्माण किया।

अकबर का शाही पुस्तकालय 24000 हस्तलिखित पोथियों से भरा पड़ा था। किसी विशिष्ट अतिथि के आने पर वह उन्हें अपना यह पुस्तकालय दिखाते थे।

इसी के साथ-साथ अकबर ने अपने अन्तःपुर में अतिथिशाला महल, शयनकक्ष को भी सुन्दर भित्तिचित्रों से सुसज्जित करवाया हुआ था। साथ ही साथ स्तम्भ छत, एवं फर्श को भी विविध विधियों से सज्जित कर आकर्षक बनाया गया था।

यह सभी कलाकृतियाँ अकबर की रूचि एवं परिष्कार की सूचक हैं। साथ ही हिन्दू रानी के प्रेम एवं सहयोग ने इनको संवेदनशील बना दिया था जिसकी छाप उनकी उदार नीति तथा कला परिकल्पना में अवश्य सहयोग देती है।

यही कारण है कि जीवन के विविध आयाम इनके समय के चित्रों में दृष्टिगोचर हो जाते हैं। अकबर के कलाकार उनके दरबार के रत्न थे। जिन्हें उन्होंने विशेष प्रकार से जाँच परख कर अपने दरबार में रखा था।

उनके दरबार के ये उच्चकोटि के रत्न अबदुस्समद, मुकुन्द, मीर सैयद अली, दसवन्त, बसावन, जगन्नाथ, केसो, माधो, ताराचन्द, हरवंश, खेमकरन, मिस्कीन, गोविन्द आदि थे। अबुलफजल ने आइने अकबरी में अकबर की चित्रशाला में 13 विख्यात चित्रकारों के नामों का उल्लेख किया है जो प्रायः मिलकर कार्य करते थे।

अकबर की नीति विषयवस्तु के सन्दर्भ में उदार रही। इनके समय में बनाए गए चित्रों में भारतीय तथा अभारतीय दोनो प्रकार के विषयों को अपनाया गया जिसके अन्तर्गत ऐतिहासिक दरबारी व्यक्ति चित्रण आदि का अंकन है।

अकबर के ऐतिहासिक महत्व की अनेक घटनाओं को कलाकारों ने अनेक कलापूर्ण पोथियों में सुसज्जित किया जिनकी संख्या सैकड़ों में थी। इन सभी चित्रों से तत्कालीन इतिहास की बहत जानकारी मिलती है।

इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि अकबर के समय के व्यक्तिचित्रों का अपना एक पृथक महत्व रहा है जिसके अंकन में कलाकारों ने विशेष निपुणता प्रदर्शित कर कला जगत को एक प्रेरणादायक धरोहर प्रदान की है।

इसका कारण यह था कि मुगल सम्राटों को व्यक्ति चित्र (शबीह ) बनवाने का बहुत शौक था। उसी प्रकार अकबर भी अपनी शबीह बनवाने हेतु बहुत रूचि से बैठता था।

इतना ही नहीं वह अपने पूर्वजों विशिष्ट अतिथियों तथा सन्तों के व्यक्ति चित्र भी बनवाते थे जिन्हें वह एलबम में सुरक्षित रखते थे। इनके समय के बहुत से चित्र देश विदेश के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।

अकबर कलाकारों का सर्वदा मार्गदर्शन करता था। उनके प्रोत्साहन हेतु दरबार में सप्ताह में एक बार प्रदर्शनों का आयोजन किया जाता था। अकबर के दरबार में सांस्कृतिक उत्थान हेतु नवरत्न थे जिनमें तानसेन, भगवानदास राजा मान सिंह, बिहारीमल आदि हिन्दू थे।

इसके अतिरिक्त चित्रकारों में खाती कायस्थ तथा कहार जाति के भी थे। दसवन्त कहार जाति के थे जो पालकी उठाने तथा दीवारों पर लेखन कार्य करते थे। सम्राट अकबर इनके कार्यों को देखकर बहुत प्रभावित हुए तथा उन्हें अपने आश्रय में रख लिया।

इस समय चित्रों में लेखन कार्य भी किया जाता था विद्वानों के अनुसार भारतीय चित्रकारों की तुलना में ईरानी चित्रों में यह लेखन अधिक सुन्दर है किन्तु ऐसा नहीं हे भारतीय कलाकारों ने भी उतनी ही सधी तूलिका से स्पष्ट तथा प्रभावपूर्ण आलेखन किया जितना ईरानी कलाकारों ने। चित्रण कार्य के अतिरिक्त मुगल सम्राटों को मस्त हाथियों पर बैठकर शिकार करना उनका युद्ध देखना तथा सवारी करना भी प्रिय था।

इसी प्रकार अकबर को भी मस्त हाथियों पर सवारी करना बहुत प्रिय था। अकबरनामा में ऐसे बहुत से चित्र हैं जिनमें उन्हें पशुओं के साथ चित्रित किया गया है।

इस सन्दर्थ में एक चित्र विशेष सराहनीय है जिसमें उन्हें हवाई ( Hawai) नामक हाथी के साथ दर्शाया गया है जो उनका प्रिय हाथी था । चित्र का शीर्षक है "अकवर एण्ड ए मस्त एलीफैन्ट ऑन द ब्रिज ऑफ बोटस"।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पाल शैली पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  2. प्रश्न- पाल शैली के मूर्तिकला, चित्रकला तथा स्थापत्य कला के बारे में आप क्या जानते है?
  3. प्रश्न- पाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- पाल शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
  5. प्रश्न- अपभ्रंश चित्रकला के नामकरण तथा शैली की पूर्ण विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- पाल चित्र-शैली को संक्षेप में लिखिए।
  7. प्रश्न- बीकानेर स्कूल के बारे में आप क्या जानते हैं?
  8. प्रश्न- बीकानेर चित्रकला शैली किससे संबंधित है?
  9. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताओं की सचित्र व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- राजपूत चित्र - शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  11. प्रश्न- बूँदी कोटा स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग क्या है?
  12. प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिये।
  13. प्रश्न- बूँदी कला पर टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- बूँदी कला का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- राजस्थानी शैली के विकास क्रम की चर्चा कीजिए।
  16. प्रश्न- राजस्थानी शैली की विषयवस्तु क्या थी?
  17. प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?
  18. प्रश्न- राजस्थानी शैली के प्रमुख बिंदु एवं केन्द्र कौन-से हैं ?
  19. प्रश्न- राजस्थानी उपशैलियाँ कौन-सी हैं ?
  20. प्रश्न- किशनगढ़ शैली पर निबन्धात्मक लेख लिखिए।
  21. प्रश्न- किशनगढ़ शैली के विकास एवं पृष्ठ भूमि के विषय में आप क्या जानते हैं?
  22. प्रश्न- 16वीं से 17वीं सदी के चित्रों में किस शैली का प्रभाव था ?
  23. प्रश्न- जयपुर शैली की विषय-वस्तु बतलाइए।
  24. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- किशनगढ़ चित्रकला का परिचय दीजिए।
  26. प्रश्न- किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
  27. प्रश्न- मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग पर एक लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मेवाड़ शैली के प्रसिद्ध चित्र कौन से हैं?
  29. प्रश्न- मेवाड़ी चित्रों का मुख्य विषय क्या था?
  30. प्रश्न- मेवाड़ चित्र शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
  31. प्रश्न- मेवाड़ एवं मारवाड़ शैली के मुख्य चित्र कौन-से है?
  32. प्रश्न- अकबर के शासनकाल में चित्रकारी तथा कला की क्या दशा थी?
  33. प्रश्न- जहाँगीर प्रकृति प्रेमी था' इस कथन को सिद्ध करते हुए उत्तर दीजिए।
  34. प्रश्न- शाहजहाँकालीन कला के चित्र मुख्यतः किस प्रकार के थे?
  35. प्रश्न- शाहजहाँ के चित्रों को पाश्चात्य प्रभाव ने किस प्रकार प्रभावित किया?
  36. प्रश्न- जहाँगीर की चित्रकला शैली की विशेषताएँ लिखिए।
  37. प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- अकबरकालीन वास्तुकला के विषय में आप क्या जानते है?
  39. प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
  40. प्रश्न- मुगल शैली के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- अकबर और उसकी चित्रकला के बारे में आप क्या जानते हैं?
  42. प्रश्न- मुगल चित्रकला शैली के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखिए।
  43. प्रश्न- जहाँगीर कालीन चित्रों को विशेषताएं बतलाइए।
  44. प्रश्न- अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ क्या थीं?
  45. प्रश्न- बहसोली चित्रों की मुख्य विषय-वस्तु क्या थी?
  46. प्रश्न- बसोहली शैली का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- काँगड़ा की चित्र शैली के बारे में क्या जानते हो? इसकी विषय-वस्तु पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- काँगड़ा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  49. प्रश्न- बहसोली शैली के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- बहसोली शैली के लघु चित्रों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  51. प्रश्न- बसोहली चित्रकला पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  52. प्रश्न- बहसोली शैली की चित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
  53. प्रश्न- कांगड़ा शैली की विषय-वस्तु किस प्रकार कीं थीं?
  54. प्रश्न- गढ़वाल चित्रकला पर निबंधात्मक लेख लिखते हुए, इसकी विशेषताएँ बताइए।
  55. प्रश्न- गढ़वाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कीजिए ।
  56. प्रश्न- गढ़वाली चित्रकला शैली का विषय विन्यास क्या था ? तथा इसके प्रमुख चित्रकार कौन थे?
  57. प्रश्न- गढ़वाल शैली का उदय किस प्रकार हुआ ?
  58. प्रश्न- गढ़वाल शैली की विशेषताएँ लिखिये।
  59. प्रश्न- तंजावुर के मन्दिरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- तंजापुर पेंटिंग का परिचय दीजिए।
  61. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग की शैली किस प्रकार की थी?
  62. प्रश्न- तंजावुर कलाकारों का परिचय दीजिए तथा इस शैली पर किसका प्रभाव पड़ा?
  63. प्रश्न- तंजावुर पेंटिंग कहाँ से संबंधित है?
  64. प्रश्न- आधुनिक समय में तंजावुर पेंटिंग का क्या स्वरूप है?
  65. प्रश्न- लघु चित्रकला की तंजावुर शैली पर एक लेख लिखिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book